Saturday 20 April 2013

रास्ते मुझे पहले भी मुझे याद नहीं रहते थे.

रास्ते मुझे पहले भी मुझे याद नहीं रहते थे.
रास्ते अब भी मुझे याद नहीं रहते.
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वर्षों पहले किसी ने मुझे अपने घर का रास्ता बताया था.
एक अर्थपूर्ण मुस्कुराहट को मैने होठों पर आने से रोक दिया था...
चलो, कोई रास्ता दिखाने वाला तो मिला,
और, रास्ते का भी पता चला.
शायद मंज़िल का भी.
' महाजनो येन गतः स पंथा' की तरह, सोचा-
अब तो, रास्ता वही है जो तुम्हारे घर तक पहुँचे.

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मैं अब भी बेवजह उस रास्ते से गुजरता हूँ-
जो तुम्हारे घर तक पहुँचता है.
यह जानते हुए भी कि अब उस घर में तुम नहीं हो.
लेकिन अब भी याद है
बचपन में रटे गये संस्कृत के श्लोकों की तरह,
रास्ता वही है जो तुम्हारे घर तक जाता है.

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वर्षों बाद ...
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ-
कितने ही लंबे रास्ते तय किए मैने अब तक,
पर,सब के सब तकरीबन भटकते हुए,
मंज़िल से अनजान.....

ब्रजेश
18/02/2013

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