Tuesday 21 February 2023

ग़ज़ल

 मेरे दर्दे दिल को पिघलने दो ज़रा,

नज़रों को नज़र से मिलने दो ज़रा


गम का सूरज सर पे चढ़ आया है,

खुशियों की बदली, बरसने दो ज़रा


हाँ, मुझ तक नहीं पहुँचती,राह तेरी,

चले जाना,पल भर, संभलने दो ज़रा.


है खबर इसे भी,क्या दवा है मर्ज की,

इसबीमारदिल को पर,बहलने दो ज़रा.


कभी जमाने का ख़ौफ़,कभी रुसवाई का डर,

जीना है गर,ये मंज़र,बदलने दो ज़रा.


ब्रजेश

14/02/2007

Wednesday 25 May 2022

मैं हूँ धरा

 तुम ठहरे सूरज,

प्रदीप्त, प्रकाशपुँज,

उजास से भरे.

मैं हूँ धरा,

स्याह अंधेरा.

रोशनी की सतत तलाश में रहता हूँ ,

अथक-अनवरत,

तुम्हारी चतुर्दिक परिक्रमा करता हूँ.

शीत-ताप सहता हूँ,

कितने मौसमों को जीता हूँ.


तुम ठहरे सूरज,

स्थिर, अविचल

मैं धरा हूँ-

बेबस, विकल.


ब्रजेश

१९/०५/२०१५

मुक्ति

 देह उष्मा का आगार है.

जीवन......

जलते रहने, तपते रहने का नाम है.

(98डिग्री फ़ारेनहाइट पर.)


हर उष्ण पिंड अपनी तपिश से मुक्ति चाहता है.


मेरी ख्वाहिशों की,

तुमसे सारी गुज़ारिशों की,

मूल वजह यही है शायद.


ब्रजेश

२५/०५/२०१५

Sunday 18 August 2019

तपश्चर्या

मैं हवा में अपनी उंगलियों को दौड़ाता हूँ,
तुम्हारी मनोहारी तस्वीर उकेरता हूँ.
इस तस्वीर में चिर संचित कल्पनाओं के रंग भरता हूँ.
तुम्हारे चतुर्वणी नाम-मंत्र को उच्चारता हूँ-
अपने आँसुओं का अर्घ्य अर्पित करता हूँ.
आँखे मूंद तुम्हारा आवाहन करता हूँ,
तुम स्मितमुख प्रगट हो आती हो.
मेरी तस्वीर में प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है.
मेरी तपश्चर्या पूर्ण होती है,
मेरी साधना सफल होती है.
मैं किसी अघोड़ की तरह अट्टहास करता हूँ,
उन्मत्त हो नृत्यरत हो जाता हूँ,
मैं अलौकिक हो जाता हूँ,
मैं शंखनाद करता हूँ-
तापत्रय मुझसे दूर भाग खड़े होते हैं,
मैं निष्कलुष हो जाता हूँ,
सत् चित आनंद.

ब्रजेश
19/08/2012

Saturday 20 April 2013

जब हम प्रेम में होते हैं

जब हम प्रेम में होते हैं,
पूरी दुनिया से रूबरू होते हैं

सजग हो जाती हैं जिहवा पर स्वाद कलिकाएँ 
बढ़ जाता है जीवन का आस्वाद
त्वचा पर उग आते हैं संवेदनशील संस्पर्शक
सारे गंधों को ग्रहण करती है हमारी नासा पुट
सारा शोर-शराबा, जीवन का संगीत बन,
बजता है कानों में-

जब हम प्रेम में होते हैं,
रोकते हैं शरीर बच्चे को,
आवारा कुत्तों पर पत्थर फेकने से
गर्दन झुका ,बंद आँखों से
बड़े अदब से देते हैं विदाई
अंतिम यात्रा पर जा रहे सहयात्री को.
जब हम प्रेम में होते हैं,
रोप देते हैं गुलाब का एक विरवा.

जब हम प्रेम में होते हैं,
स्कूल जा रहे छोटे बच्चों के माथे पर रखते हैं आश्वस्ति भरा हाथ
जब हम प्रेम में होते हैं,
हमारे पास समय होता है कविताओं को पढ़ने का
प्रकृति के सौन्द्र्य को निहारने का
अलग-अलग फूलों के रंगो को विचारने का
जब हम प्रेम में होते हैं,
सुबह का स्वागत करते हैं मुस्कुराकर
और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं इस जीवन के लिए

जब हम प्रेम में होते हैं,
खुले आसमान के नीचे विचरते हैं
और,चाँद-तारों से करते हैं दिल की बात
जब हम प्रेम में होते हैं,
अख़बारों के स्याह खबरों से होते हैं दुखी
हिन्दी फिल्मों का भला किरदार
होठों पर मुस्कुराहट और आँखों में ला देता है नमी
शाहरुख ख़ान के संग गाते हैं-
तुझे देखा तो ये जाना सनम
और महरूम रफ़ी साहब की मखमली आवाज़ के साथ मिलाते हैंअपनी आवाज़ -
तेरी आँखो केसिवा दुनिया में रखा क्या है.

जब हम प्रेम में होते हैं,
माँ को भर लाते हैं अंक मेंऔर
जताते हैं थोडा अतिरिक्त प्यार
आईने को करते हैं विवश,
ढीठ की तरह खड़े रहते हैं सामने
जब तक वह यह ना कह दे
चलो, काफ़ी है आज के लिए

जब हम प्रेम में होते हैं,
हो जाते हैं सदय
और अपनी गाड़ी को टक्कर मारने वाले को भी
पीछे मुड़कर,
देखते हैं मुस्कुराकर
और ज़ुबान बच जाती है गंदी हो जाने से

जब हम प्रेम में होते हैं,
शब्दों का टोटा हो जाता है ख़त्म
हम हो जाते हैं बातुनी

जब हम प्रेम में होते हैं,
अपनी हथेलियों पर लिखते हैं, मिटाते हैं
दुनिया की सबसे हसीन लड़की का नाम
जब हम प्रेम में होते हैं,अकारण ही जुड़ जाती हैं हथेलिया
दुनिया की तमाम इबादतगाहों में की जा रही प्रार्थनाओं के लिए

जब हम प्रेम में होते हैं,
सुलझ जाती है ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमयी गुत्थी
आख़िरकार, जीवन का मकसद क्या है?
जब हम प्रेम में होते हैं,धरती बन जाती है अपनी देह
और ईष्ट हो जाता है आसमान।

ब्रजेश
16/03/2013

रास्ते मुझे पहले भी मुझे याद नहीं रहते थे.

रास्ते मुझे पहले भी मुझे याद नहीं रहते थे.
रास्ते अब भी मुझे याद नहीं रहते.
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वर्षों पहले किसी ने मुझे अपने घर का रास्ता बताया था.
एक अर्थपूर्ण मुस्कुराहट को मैने होठों पर आने से रोक दिया था...
चलो, कोई रास्ता दिखाने वाला तो मिला,
और, रास्ते का भी पता चला.
शायद मंज़िल का भी.
' महाजनो येन गतः स पंथा' की तरह, सोचा-
अब तो, रास्ता वही है जो तुम्हारे घर तक पहुँचे.

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मैं अब भी बेवजह उस रास्ते से गुजरता हूँ-
जो तुम्हारे घर तक पहुँचता है.
यह जानते हुए भी कि अब उस घर में तुम नहीं हो.
लेकिन अब भी याद है
बचपन में रटे गये संस्कृत के श्लोकों की तरह,
रास्ता वही है जो तुम्हारे घर तक जाता है.

.........................................................
वर्षों बाद ...
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ-
कितने ही लंबे रास्ते तय किए मैने अब तक,
पर,सब के सब तकरीबन भटकते हुए,
मंज़िल से अनजान.....

ब्रजेश
18/02/2013

Saturday 16 February 2013

ये उदासियों का मौसम है...

आज आँख फिर पुरनम है,
ये उदासियों का मौसम है...

यादों की बदली बरसाके गया,
ये हवा भी,कितनी बेरहम है?

वही गाँव, वही गलियाँ- चौराहे,
आज भी मेरा, तू ही हमदम है.

ग़मे-इश्क ने बर्बाद होने ना दिया,
मेरेजख्मेदिल का यहीतो मरहम है.

आ,भूले से कभी,मेरी महफ़िल में,
साजे दिल पे,तन्हाइयो का सरगम है.

ब्रजेश
11/02/2013