Wednesday, 25 May 2022

मैं हूँ धरा

 तुम ठहरे सूरज,

प्रदीप्त, प्रकाशपुँज,

उजास से भरे.

मैं हूँ धरा,

स्याह अंधेरा.

रोशनी की सतत तलाश में रहता हूँ ,

अथक-अनवरत,

तुम्हारी चतुर्दिक परिक्रमा करता हूँ.

शीत-ताप सहता हूँ,

कितने मौसमों को जीता हूँ.


तुम ठहरे सूरज,

स्थिर, अविचल

मैं धरा हूँ-

बेबस, विकल.


ब्रजेश

१९/०५/२०१५

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