शब्द संजीवनी हैं मेरे लिए. शब्द मेरे मन को बहलाते हैं और दुलारते भी हैं. शब्दों की लड़ी पिरोकर मन की विकलता दूर हो जाती है. शब्द मेरे मन के सच्चे मीत हैं.
देह उष्मा का आगार है.
जीवन......
जलते रहने, तपते रहने का नाम है.
(98डिग्री फ़ारेनहाइट पर.)
हर उष्ण पिंड अपनी तपिश से मुक्ति चाहता है.
मेरी ख्वाहिशों की,
तुमसे सारी गुज़ारिशों की,
मूल वजह यही है शायद.
ब्रजेश
२५/०५/२०१५
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