मैं आदतन मुस्कुराता रहता हूँ.
दिल के दाग छिपाता रहता हूँ.
परन्तु, अक्सर मेरी चोरी पकड़ी जाती है.
मेरे माथे पर कुछ ,
अनलिखी इबारत उभर आती है.
जिसे पढ़ने में कोई चूक नहीं करते मेरे बच्चे
और मेरी अर्धांगिनी.
मुझे इसका अहसास तब होता है,
जब,
मेरा बेटा मेरी बिखरी चीज़ों को सहेजता है,
दफ़्तर के लिए निकलने से पहले.
बार-बार पूछता है-
पापा, तुम कब तक लौतोगे?
बेटी बिना कुछ बोले,
मेरी पीठ पर चढ़कर,
मेरे गालों को चूमती है.
और,
मेरी धर्मपत्नी,
मेरी महिला मित्रों को लेकर ताने मारना,
एकदम से बंद कर देती है.
ब्रजेश
22/02/2012
दिल के दाग छिपाता रहता हूँ.
परन्तु, अक्सर मेरी चोरी पकड़ी जाती है.
मेरे माथे पर कुछ ,
अनलिखी इबारत उभर आती है.
जिसे पढ़ने में कोई चूक नहीं करते मेरे बच्चे
और मेरी अर्धांगिनी.
मुझे इसका अहसास तब होता है,
जब,
मेरा बेटा मेरी बिखरी चीज़ों को सहेजता है,
दफ़्तर के लिए निकलने से पहले.
बार-बार पूछता है-
पापा, तुम कब तक लौतोगे?
बेटी बिना कुछ बोले,
मेरी पीठ पर चढ़कर,
मेरे गालों को चूमती है.
और,
मेरी धर्मपत्नी,
मेरी महिला मित्रों को लेकर ताने मारना,
एकदम से बंद कर देती है.
ब्रजेश
22/02/2012
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