Friday 13 July 2012

उधेड़बुन

बहुत सारी कहावतें, मुहावरे,सूक्तियाँ और सुभाषित वाणीयाँ कही जाती हैं-
जब भी कदम डगमगाते हैं,
जिंदगी के आड़े-तिरछे रास्ते नापते हुए.
मैं उधेड़बुन में पड़ जाता हूँ-
क्या इन कहावतों-मुहावरों, सुक्तियों-सुभाषित वाणीयों का,
एक समुच्चय बनाऊँ,
और, इन्हें LHS की ओर रखूं,
और, फिर अपनी जिंदगी को RHS की ओर.
और, तमाम उम्र LHS-RHS को साधता रहूँ....
फिर इसी कशमकश में जिंदगी के रास्ते ही ख़त्म हो जायें !
या यूँ ही चलता रहूँ,
चलने का उत्सव मनाते हुए,
यात्रा में मिलने वाले-
चोटों को सहलाते हुए,
ज़ख़्मों की पीड़ा बिसराते हुए.
(थकने जैसी तो कोई बात ही नहीं है.)
बस , चलता रहूं...
दीवानावार.

ब्रजेश
22/02/2012

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