ना रह जाए,कुछ अनकहा,
रह ना जाए, कुछ अनसुना,
तेरे-मेरे दरम्या...
ना सोचें कि हम,
क्या सोचेंगे भला?
द्वन्दो के पर कतर,
हम मुस्कुरायें परस्पर.
चाहें तो गले लग जायें,
चाहें तो कुछ गायें,
चाहें तो, थोडा थिरक लें हम,
चाहें तो खिलखिलायें.
एक-दूजे का हाथ थाम,
नाप आयें पूरी धरती,
या, यों ही लेटे-लेटे,
आंक लें,विस्तार पूरे नभ का.
प्रतिषेध और निषेध की गठरी
फेंक आयें समंदर में,
और तट की मरु पर,
एक लंबी दौड़ लगायें.
आओ,चलो, पता लगा लें,
क्या है हमारी अहमियत?
किसको है हमारी ज़रूरत?
इस विराट शून्य में.
ब्रजेश
28-01-2013
रह ना जाए, कुछ अनसुना,
तेरे-मेरे दरम्या...
ना सोचें कि हम,
क्या सोचेंगे भला?
द्वन्दो के पर कतर,
हम मुस्कुरायें परस्पर.
चाहें तो गले लग जायें,
चाहें तो कुछ गायें,
चाहें तो, थोडा थिरक लें हम,
चाहें तो खिलखिलायें.
एक-दूजे का हाथ थाम,
नाप आयें पूरी धरती,
या, यों ही लेटे-लेटे,
आंक लें,विस्तार पूरे नभ का.
प्रतिषेध और निषेध की गठरी
फेंक आयें समंदर में,
और तट की मरु पर,
एक लंबी दौड़ लगायें.
आओ,चलो, पता लगा लें,
क्या है हमारी अहमियत?
किसको है हमारी ज़रूरत?
इस विराट शून्य में.
ब्रजेश
28-01-2013
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