फेसबुक पर मेरी पहली कविता का स्वागत करें...
मेरे जनक और जननी की पुण्य स्मृति को समर्पित-
जिनकी उंगलियों को पकड़ कर मैने चलना सीखा,
वे अंतर्धान हो गये.
शायद उन्हें भ्रम हो गया था कि-
मैने अब चलना सीख लिया है.
मैं अपनी उन उंगलियों को देखता हूँ,परखता हूँ,
जिन्हें पकड़कर मेरे बच्चे चलना सीख रहे हैं.
और फिर सोचता हूँ,
ये जल्दी चलना सीख लें.
एक दिन मुझे भी अंतर्धान हो जाना है.
ब्रजेश
04/11/2006
मेरे जनक और जननी की पुण्य स्मृति को समर्पित-
जिनकी उंगलियों को पकड़ कर मैने चलना सीखा,
वे अंतर्धान हो गये.
शायद उन्हें भ्रम हो गया था कि-
मैने अब चलना सीख लिया है.
मैं अपनी उन उंगलियों को देखता हूँ,परखता हूँ,
जिन्हें पकड़कर मेरे बच्चे चलना सीख रहे हैं.
और फिर सोचता हूँ,
ये जल्दी चलना सीख लें.
एक दिन मुझे भी अंतर्धान हो जाना है.
ब्रजेश
04/11/2006
No comments:
Post a Comment