Tuesday, 21 February 2012

समय का दरिया


समय का दरिया बहा ले जा रहा है मुझको,
दूर, तुमसे दूर, बहुत दूर......
मैं शब्दों के सेतु बांधता रहता हूँ,
तुम तक लौट आने का यत्न करता रहता हूँ.
अनवरत...अविकल....
दरिया के थपेड़े हर पल मेरी राह रोकते हैं,
और मैं अपनी हर उखड़ती साँसों के साथ,
एक कोशिश और करता हूँ,
तुम तक लौट आने की.

कभी-कभी सोचता हूँ -
तुम तक पहुँचना अब अभीष्ट नहीं रह गया,
तुम तक पहुँचने की हर कोशिश ही-
मेरी जिंदगी के मायने हैं.

कभी-कभी सोचता हूँ -
मैं भले ही तुम तक नहीं पहुँच पाऊँ,
परंतु, एक ना एक दिन,
हवा में उड़ने वाले श्वेत अश्वों से जुड़े सुनहरे रथ पर सवार होकर,
पीले,गुलाबी और धानी रंगों के परिधानो में दमकती हुई,
स्वर्णिम आभा और मनमोहक सुवास बिखराती हुई,
मेरे सम्मुख आ खड़ी होगी,
और कहोगी-
आओ, अब चलें,
और फिर बैठा लोगी मेरा हाथ पकड़कर,
हवा में उड़ने वाले अपने रथ पर.
फिर हम चल पड़ेंगें-
समय से परे...अंतहीन यात्रा पर.
और नीचे, दूर कहीं....
समय का दरिया बहता रह जाएगा.

ब्रजेश
18/02/2012

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