बैकुंठ यादव सचेत हो जाओ
मेरे दूर के रिश्ते में आता है बैकुंठ यादव
साला.....
आजकल शहर का प्रतिष्टित आदमी बन गया है.
उसके घर की उँचाई भी उसकी प्रतिष्ठा की तरह,
साल दर साल बढ़ रही है..
साथ ही साथ,
जिस अनुपात में उसकी प्रतिष्ठा और घर की उँचाई बढ़ रही है,
मेरी बस्ती के मजदूरों के झोपडे छोटे होते चले जा रहे है...
मुझे डर लगता है उस दिन का ख्याल करके,
जब यों ही होते-होते,
एक दिन झोपडे अपना अस्तित्व खो बैठेंगें.
लेकिन, ऐसा कभी हुआ नही है.
इसलिए,
बैकुंठ यादव सचेत हो जाओ,
अपने पेट की पाचन-शक्ति घटाओ,
जिसमें सब कुछ पच जाता है.
ब्रजेश
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